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देवगांव बकलोह में दो दिवसीय पारंपरिक मेला संपन्न, दंगल और सांस्कृतिक गतिविधियां रहीं आकर्षण का केंद्र

Dalhousie Hulchul

डलहौज़ी हलचल (चंबा) भूषण गुरंग : हर साल जून में हिमाचल प्रदेश के बकलोह स्थित देवगांव में लगने वाला मेला न केवल स्थानीय संस्कृति की झलक प्रस्तुत करता है, बल्कि पहलवानी, खरीदारी और सामुदायिक मेलजोल का भी अद्भुत अवसर बन जाता है।

बकलोह की जरई पंचायत के देवगांव में 16 और 17 जून को दो दिवसीय पारंपरिक मेले का आयोजन पूरे धूमधाम के साथ किया गया। यह मेला गांव की एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे पीढ़ियों से यहां के लोग सहेजते आ रहे हैं। मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, ग्रामीण खेल परंपरा और सांस्कृतिक संरक्षण का उत्सव बन चुका है।

दंगल में पहलवानों का जबरदस्त मुकाबला

मेले के पहले दिन दंगल का आयोजन किया गया, जिसमें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान से करीब 60 पहलवानों ने भाग लिया। कुश्ती मुकाबले बेहद रोमांचक रहे और दर्शकों का जोश देखते ही बनता था। पहली माली में हरियाणा के पीटी कैथल के पहलवान ने सोमबीर को हराकर ₹9100 की इनामी राशि जीती, जबकि उपविजेता को ₹8100 का पुरस्कार दिया गया। दूसरी माली में लतीफ तीसा ने मोनू को हराकर ₹7100 का पुरस्कार जीता और उपविजेता को ₹6100 दिए गए। तीसरी माली में नजीर तीसा ने विजय सरोल को हराकर ₹4100 की इनामी राशि प्राप्त की, जबकि हारने वाले को ₹3100 मिले।

इन मुकाबलों ने पारंपरिक अखाड़ा संस्कृति को जीवित रखते हुए युवाओं में खेल भावना और शारीरिक फिटनेस को लेकर उत्साह पैदा किया।

झूले, संगीत और खरीदारी ने बढ़ाया उत्सव का रंग

दूसरे दिन जैसे ही मौसम साफ हुआ, पूरे क्षेत्र से लोग मेले में उमड़ पड़े। बच्चों ने झूलों, ट्रेम्पोलिन और जंपिंग कैसल का जमकर लुत्फ उठाया, वहीं महिलाओं ने पारंपरिक दुकानों से घरेलू सामान, आभूषण और कपड़ों की खरीदारी की। मेला कमेटी की ओर से मनोरंजन के लिए डीजे की व्यवस्था की गई थी, जिसकी धुन पर युवा वर्ग ने खूब आनंद लिया और उत्सव को संगीतमय बना दिया।

परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प

मेला कमेटी के प्रधान चेन सिंह ने बताया कि यह मेला उनके पूर्वजों की अमूल्य विरासत है, जिसे वर्तमान पीढ़ी उसी भावना और समर्पण से आगे बढ़ा रही है। उन्होंने सभी पहलवानों, मेहमानों और ग्रामवासियों का आभार व्यक्त करते हुए सभी से आग्रह किया कि वे भविष्य में भी इस आयोजन में भाग लें और इस सांस्कृतिक परंपरा को जीवित रखें।

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