डलहौज़ी हलचल (राजगढ़) कपिल शर्मा : हिमाचल प्रदेश के गिरीपार क्षेत्र के राजगढ़ के जागल गांव के प्रसिद्ध लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी को वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम द्वारा डाॅक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान उन्हें लोक संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने और प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए दिया जा रहा है।
लोक संस्कृति के उत्थान के लिए तीन दशकों का योगदान
जोगेंद्र हाब्बी ने पिछले 28-30 वर्षों से हिमाचल प्रदेश और भारत के विभिन्न हिस्सों में 5000 से अधिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से लोक संस्कृति को जीवित रखने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नब्बे के दशक में उन्होंने चूड़ेश्वर सांस्कृतिक दल का गठन किया और सिंहटू, भड़ाल्टू, डग्याली, ठोडा, रिहाल्टी गी, ढीली नाटी, धूड़िया स्वांग, करियाला तथा सिरमौरी नाटी जैसे पारंपरिक नृत्यों को हिमाचल और भारत के विभिन्न राज्यों में प्रस्तुत कर लोक संस्कृति को समृद्ध किया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
जोगेंद्र हाब्बी ने हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर को न केवल देश के भीतर बल्कि यूरोप के कई देशों जैसे बुल्गारिया, मैसेडोनिया, ग्रीस और तुर्की में भी सिरमौरी नाटी की प्रस्तुतियों के माध्यम से प्रदर्शित कर प्रदेश की संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। उनके नेतृत्व में, चूड़ेश्वर सांस्कृतिक दल ने इंडिया बुक, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी अपना नाम दर्ज किया है, जो उनके निरंतर प्रयासों और समर्पण का प्रमाण है।
सम्मान और आभार
लोक संस्कृति के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए, वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम की एकेडमिक काउंसिल ने उन्हें डाॅक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इस अवसर पर, जोगेंद्र हाब्बी ने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थॉमस रिचर्ड विलियम बैंस, गुरु पद्म श्री विद्यानंद सरैक, और चूड़ेश्वर सांस्कृतिक मंडल के सभी वरिष्ठ और कनिष्ठ कलाकारों के साथ प्रदेश के सभी कला प्रेमियों का आभार व्यक्त किया है।
हिमाचल की संस्कृति को विश्व मंच पर पहचान
जोगेंद्र हाब्बी के नेतृत्व में चूड़ेश्वर सांस्कृतिक दल ने हिमाचल की पारंपरिक संस्कृति को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी पहचान दिलाई है। उनके निरंतर प्रयासों और समर्पण ने उन्हें इस सम्मान का हकदार बनाया है, और यह मानद उपाधि उनके सांस्कृतिक सफर का एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।