डलहौजी हलचल (शिमला): हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) की नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देते हुए CPS कानून को निरस्त कर दिया है। इसके बाद सभी मुख्य संसदीय सचिवों को दी जा रही सुविधाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गई हैं। अब सभी छह मुख्य संसदीय सचिव सिर्फ विधायक के तौर पर ही कार्य करेंगे। यह फैसला पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था की ओर से वर्ष 2016 में दायर याचिका पर आधारित है। इसके अलावा, दूसरी याचिका कल्पना और तीसरी याचिका भाजपा नेता और पूर्व CPS सतपाल सत्ती सहित अन्य 11 विधायकों द्वारा दायर की गई थी।
सीपीएस नियुक्तियों पर उठे सवाल
हिमाचल प्रदेश में CPS की नियुक्तियों का मुद्दा लंबे समय से विवादों में है। हिमाचल विधानसभा में 68 विधायकों के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 164 के संशोधन के तहत राज्य में अधिकतम 12 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं। वर्तमान में सुक्खू सरकार ने छह विधायकों को CPS के पद पर नियुक्त किया था। इनमें अर्की से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल शामिल हैं।
CPS को मिलने वाली सुविधाओं पर भी सवाल उठाए जा रहे थे। उन्हें 65 हजार रुपये का मूल वेतन मिलता था, जो भत्तों के साथ 2.20 लाख रुपये प्रति माह तक पहुंच जाता था, जबकि विधायकों का वेतन और भत्ते 2.10 लाख रुपये प्रति माह था। इसके अलावा, CPS को सरकारी गाड़ी और स्टाफ की सुविधा भी प्रदान की जाती थी। इस वेतन अंतर और सुविधाओं को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे थे।
सीपीएस नियुक्ति का इतिहास और राजनीतिक विवाद
हिमाचल में CPS की नियुक्तियों को लेकर पहले भी कई बार राजनीतिक विवाद हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की सरकार ने 2013 में 10 CPS नियुक्त किए थे, जबकि 2007 में प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने अपने कार्यकाल में तीन CPS नियुक्त किए थे। वर्ष 2006 में हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्ति, सुविधा और एमेनेटिज एक्ट बनाया गया था, जिसके तहत CPS की नियुक्तियां होती आई हैं।
कोर्ट के फैसले का प्रभाव
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश के सभी मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां असंवैधानिक हो गई हैं और उन्हें अब केवल विधायक के रूप में कार्य करना होगा। कोर्ट के इस निर्णय से हिमाचल में CPS के पद पर हो रही नियुक्तियों और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर लगाम लगेगी।
निष्कर्ष: यह फैसला हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जिससे भविष्य में राज्य में CPS की नियुक्तियों पर प्रभाव पड़ेगा और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करने पर जोर दिया जाएगा।