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नाहन में डॉ. यशवंत सिंह परमार की जयंती पर श्रद्धांजलि और पौधारोपण कार्यक्रम

Dalhousie Hulchul
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भाजपा नेताओं ने अर्पित की श्रद्धांजलि

डलहौज़ी हलचल (नाहन/सोलन) – हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार की जयंती के मौके पर नाहन के माल रोड स्थित डॉ. परमार की प्रतिमा पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर राजीव बिंदल ने कहा, “यदि डॉ. परमार न होते, तो पहाड़ी राज्य हिमाचल भी न होता। उन्होंने न केवल इतिहास, बल्कि भूगोल भी बदल दिया।”

“एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत पौधारोपण

इस मौके पर भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत पौधारोपण कार्यक्रम भी आयोजित किया। नाहन मंडल में आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. बिंदल ने स्वयं पौधारोपण किया।

Contents
भाजपा नेताओं ने अर्पित की श्रद्धांजलिडलहौज़ी हलचल (नाहन/सोलन) – हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार की जयंती के मौके पर नाहन के माल रोड स्थित डॉ. परमार की प्रतिमा पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर राजीव बिंदल ने कहा, “यदि डॉ. परमार न होते, तो पहाड़ी राज्य हिमाचल भी न होता। उन्होंने न केवल इतिहास, बल्कि भूगोल भी बदल दिया।”“एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत पौधारोपणडॉ. परमार का योगदान: भूगोल और इतिहास में बदलावडॉ. यशवंत सिंह परमार का जीवन और योगदान:शैक्षिक और प्रशासनिक योगदानप्रशासनिक करियर और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिकाडॉ. परमार के आदर्शों को अपनाने का आह्वान

डॉ. परमार का योगदान: भूगोल और इतिहास में बदलाव

डॉ. बिंदल ने डॉ. परमार को याद करते हुए कहा, “डॉ. परमार ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रदेश का भूगोल बदल दिया, जिससे हिमाचल प्रदेश का पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। प्रदेश की सीमाओं को बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान रहा, जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर कोशिशें हो रही थीं।”

नाहन

डॉ. यशवंत सिंह परमार का जीवन और योगदान:

डॉ. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चन्हालग गांव में हुआ था। उनके पिता, भंडारी शिवानंद, उर्दू व फारसी के विद्वान और कला संस्कृति के संरक्षक थे। डॉ. परमार के पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे और उन्होंने अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

शैक्षिक और प्रशासनिक योगदान

डॉ. परमार ने 1922 में मैट्रिक और 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज से एमए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। 1944 में ‘सोशियो इकोनोमिक बैकवल्र्ड ऑफ हिमालयन पोलिएंडरी’ पर लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की और बाद में हिमाचल विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री प्राप्त की।

प्रशासनिक करियर और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

1930 से 1937 तक डॉ. परमार सिरमौर रियासत के सब जज और 1941 में सेशन जज रहे। 1943 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1946 में वह हिमाचल हिल्स स्टेट्स रीजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने गए। 1947 में वह ग्रुपिंग एंड एमलेमेशन कमेटी के सदस्य और प्रजामंडल सिरमौर के प्रधान रहे। उन्होंने सुकेत आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

डॉ. परमार के आदर्शों को अपनाने का आह्वान

डॉ. बिंदल ने डॉ. परमार की ऐतिहासिक भूमिका और उनके योगदान को स्मरण करते हुए हिमाचल प्रदेश के विकास में उनके अद्वितीय योगदान को सराहा। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि डॉ. परमार के आदर्शों और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाएं और प्रदेश के विकास में योगदान दें।

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