डलहौज़ी हलचल (डलहौज़ी) : आज बनीखेत के निरंकारी सत्संग (Nirankari Satsang) भवन में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया, जिसमें महात्मा रत्तन चंद जी (Mahatma Rattan Chand Ji) ने प्रवचन किया। उन्होंने बताया कि ब्रह्म ज्ञान (Brahm Gyan) केवल सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है, लेकिन उस ज्ञान पर विश्वास (Faith) तभी दृढ़ होता है जब हम महापुरुषों की संगत में आते हैं।
सत्संग से मिलता है मन को स्थिरता और शांति
महात्मा रत्तन चंद जी ने फरमाया कि जैसे-जैसे हम सत्संग में शामिल होते हैं, हमारा मन स्थिर और शांत होता जाता है। सत्संग (Satsang) के माध्यम से हमें यह एहसास होता है कि सर्वशक्तिमान परमात्मा, जो निराकार और सर्वव्यापी है, सदैव हमारे साथ है। यही विश्वास हमें मानसिक शांति और शक्ति प्रदान करता है, जिससे हम जीवन के सभी सुखों का अनुभव कर पाते हैं।
मनुष्य योनि का उद्देश्य और परमात्मा का बोध
उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य योनि (Human Life) अत्यंत दुर्लभ है, और इसी योनि में हमें परमात्मा का बोध हो सकता है। यदि इस दुर्लभ अवसर में भी हम कण-कण में व्याप्त निराकार परमात्मा का बोध नहीं कर पाए, तो यह समझना चाहिए कि हमने मनुष्य योनि का सही उपयोग नहीं किया है।
निरंकारी मिशन के उपदेशों का अनुसरण
महात्मा जी ने निरंकारी मिशन (Nirankari Mission) के उपदेशों का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण और मेल-मिलाप वाला (Harmonious and Friendly Behavior) होना चाहिए। निरंकारी होना केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हमारे आचरण और व्यवहार में भी प्रकट होना चाहिए।
सत्संग से जीवन में प्रेम और भाईचारे की भावना
महात्मा रत्तन चंद जी ने फरमाया कि सत्संग (Satsang) से हमारे जीवन में प्रेम, मेलजोल, और भाईचारे (Love, Unity, and Brotherhood) की भावना का संचार होता है। इससे मनुष्य के भीतर व्यापत नकारात्मक भाव, जैसे वैर, नफरत, ईर्ष्या, और लोभ लालच, दूर हो जाते हैं।