डलहौज़ी हलचल (बनीखेत) – आज स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महात्मा रतन चंद ने प्रवचन करते हुए भक्तिभाव, अहंकार त्याग, और परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण के महत्व पर प्रकाश डाला।
परमात्मा का सहारा, जीवन को बनाता है सहज
महात्मा रतन चंद जी ने समझाया कि जब हम भक्ति भाव से भटकते हैं, तो परमात्मा हमें संभाल लेता है। बस आवश्यकता पूर्ण समर्पण की होती है। हमें अपने अहंकार को त्यागकर एक पत्ते की तरह होना चाहिए, जो पानी पर तैरता हुआ अपनी यात्रा पूरी करता है। चाहे नदी शांत हो या उफान पर, वह अपने मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ता रहता है। ठीक इसी प्रकार परमात्मा के सहारे चलने से जीवन भी सहज हो जाता है।
अहंकार को पीछे और प्रेम को आगे रखें
उन्होंने आगे कहा कि जब संसार में इतनी विविध मान्यताएँ और भावनाएँ हैं, तो हर किसी से प्रेम कैसे किया जाए? इसका उत्तर यह है कि जब हमें हर व्यक्ति में परमात्मा दिखने लगेगा, तो हर कोई हमें श्रेष्ठ और प्रिय लगेगा। दूसरों को अपनाने और प्रेम करने की भावना विकसित होगी।
हर व्यक्ति से कुछ सीखने की भावना रखें
यदि हम हर व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने का भाव रखते हैं, तो हमें दूसरों के जीवन से प्रेरणा मिलेगी। जो मानवीय गुण उनमें हैं, वे हम भी अपने जीवन में अपना सकते हैं।
परमात्मा को भुलाने से भूलों का भय बढ़ता है
महात्मा जी ने समझाया कि जब-जब हम परमात्मा को भूलते हैं, तब-तब हमें गलत रास्ते पर जाने में देर नहीं लगती। नकारात्मकता स्वतः ही हमारे भीतर आ जाती है, फिर चाहे वह अहंकार का छोटा रूप ही क्यों न हो। इसलिए परमात्मा की याद और सत्संग से जुड़ना अत्यंत आवश्यक है।
भक्ति एक आध्यात्मिक सच्चाई है
उन्होंने बताया कि भक्ति कोई काल्पनिक बात नहीं, बल्कि एक वास्तविक आध्यात्मिक सच्चाई है। यह संसार, समाज या परिवार से अलग होकर नहीं की जाती, बल्कि इन्हीं के बीच रहकर, अपने भीतर शांति का अनुभव करने की प्रक्रिया है।
परमात्मा हर समय हमारे साथ, बस अहसास की कमी
महात्मा जी ने कहा कि परमात्मा हर समय हमारे साथ है, लेकिन हम उसे महसूस नहीं कर पाते। यह दूरी हमारी तरफ से होती है। इसे मिटाने के लिए सेवा, सुमिरण और सत्संग का सहारा लेना चाहिए। पहले परमात्मा को जानना, फिर अपने जीवन में लाना और श्रद्धा-विश्वास के साथ भक्ति करना ही आध्यात्मिक यात्रा की सच्ची शुरुआत है।
सत्संग के इस अवसर पर भक्तों ने बड़ी श्रद्धा से प्रवचन सुने और भक्ति मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।