डलहौज़ी हलचल (शिमला) : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की सराज घाटी से गंभीर हालत में शिमला लाया गया एक मामला शुक्रवार को बड़ा विवाद बन गया, जब IGMC शिमला में भर्ती एक महिला की मौत हो गई और परिजनों ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही और संवेदनहीनता के गंभीर आरोप लगाए। मृतका के बेटे लीलाधर ने आरोप लगाया कि सुबह अस्पताल में भर्ती किए जाने के बावजूद घंटों तक उनकी मां का कोई उपचार शुरू नहीं हुआ और जो ऑक्सीजन सिलेंडर दिया गया वह भी खाली था। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने बार-बार मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सुबह लगभग 10 बजे उनकी मां ने दम तोड़ दिया।
अस्पताल परिसर में हंगामा, महिला डॉक्टर से झड़प, प्रशासन मौन
मां की मौत के बाद लीलाधर जब शव को ले जाने के लिए स्ट्रेचर मांगने पहुंचे तो वहां ड्यूटी पर मौजूद एक महिला डॉक्टर से उनकी तीखी बहस हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार महिला डॉक्टर ने कथित रूप से तंज कसते हुए कहा, “अपने लाइव में यह भी दिखाइए,” जिससे लीलाधर भड़क उठे और स्थिति धक्का-मुक्की तक पहुंच गई। इस घटनाक्रम के बाद अस्पताल परिसर में माहौल तनावपूर्ण हो गया और कुछ देर तक अफरा-तफरी की स्थिति बनी रही।
परिजनों का कहना है कि वे मेडिकल सुपरींटेंडेंट डॉ. राहुल राव से शिकायत करना चाहते थे, लेकिन वे पौने 11 बजे तक अस्पताल में मौजूद नहीं थे। वहीं, IGMC के डिप्टी सुपरींटेंडेंट डॉ. अमन ने मीडिया से बातचीत में मामले की जानकारी होने से इनकार कर दिया।

IGMC की सफाई: मरीज को गंभीर हालत में लाया गया था, इलाज किया गया
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, शिमला द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार:
“दिनांक 25 जुलाई 2025, प्रातः 05:33 बजे सेवा दासी उम्र 72 वर्ष को IGMC के आपातकालीन विभाग में उनके परिजनों द्वारा लाया गया। उन्हें नेरचौक मेडिकल कॉलेज से रेफर किया गया था। मरीज को हृदय संबंधी समस्याएं थीं और उन्हें ब्लड कैंसर भी था। आवश्यक जाँच कर उन्हें शीघ्र उपचार दिया गया। जांचों के अनुसार मामला हृदयाघात का था। मरीज को CCU में रेफर किया गया, जहां सुबह 07:51 पर मृत्यु हो गई।”
मौत का कारण – हृदयघात और ब्लड कैंसर बताया गया है।

IGMC की व्यवस्था सवालों के घेरे में
यह घटना IGMC जैसे राज्य के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान में कार्यप्रणाली, आपातकालीन सेवाओं की तत्परता और चिकित्सकीय संवेदनशीलता पर कई सवाल खड़े कर गई है। परिजनों की ओर से लगाए गए आरोपों में यदि सत्यता पाई जाती है, तो यह स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए गंभीर संकेत हैं। मरीजों की जान बचाने के लिए बनाए गए संस्थानों में यदि लापरवाही और असंवेदनशील व्यवहार हावी हो जाए, तो आमजन का भरोसा तंत्र से उठना स्वाभाविक है।

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