डलहौज़ी हलचल (नूरपुर) भूषण गुरंग – नागनी माता मंदिर विशेष : हिमाचल प्रदेश को ऋषि-मुनियों और देवताओं के पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां के मंदिरों में हर साल अनेक मेले व त्यौहार आयोजित होते हैं । इनमें प्रत्येक का नाम किसी न किसी देवी-देवता से जुड़ा हुआ होता है। यह मेले न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध हैं। इनमें से नूरपुर के नागनी माता मंदिर में लगने वाले मेलों का भी महत्वपूर्ण स्थान है । यहां पर सांप-बिच्छू और अन्य जहरीले पशुओं द्वारा काटने के इलाज के लिए सिर्फ पानी पिलाया जाता है और शक्कर प्रसाद नामक मिट्टी का लेप लगाया जाता है।
मंदिर की स्थापना को लेकर एक लोकप्रिय दंत कथा है कि माता नागनी के मंदिर में एक सपेरा आया और उसे धोखे से अपने पिटारे में बंद कर लिया। रात को नागनी माता ने राजा जगतसिंह को दर्शन देकर सपेरे से उसे बचाने की विनती की। राजा ने नागनी माता को सपेरे से छुड़ाया और उसे भडवार में उसके मूल स्थान पर ले आये । सुरसा माता, नागों की देवी, नागनी माता के अन्य विख्यात नाम है। श्रद्धालुओं को मेलों के दौरान या बीच-बीच में नागनी के रूप में मां के साक्षात दर्शन जलधारा में, मंदिर के गर्भगृह में या मंदिर के प्रांगण में होते रहते हैं।
नागनी माता का ये मन्दिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक छोटे से गांव भडवार में स्थित है और हर शनिवार को श्रावण व भादों महीने में मेला लगता है। हिमाचल प्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर से हजारों श्रद्धालु नागनी माता के दर्शनों के लिए दो महीने तक चलने वाले इन मेलों में आते हैं।
बताते हैं कि यहां के राजपूत घराने के पुराने बाशिंदे जो ठाकुर मैहता परिवार से संबंध रखते थे, वही इस मंदिर के मुख्य आराधक थे। इन परिवारों की कम से कम 60 पीढ़ियां अब तक इस मंदिर में पुजारी के रूप में अपना दायित्व निभा चुकी हैं। आज भी इस खानदान के 32 परिवार बारी-बारी से मंदिर में पूजा-अर्चना का जिम्मा संभाल रहे हैं। मार्च 1971 में स्वर्गीय धजा सिंह के मार्गदर्शन में मंदिर प्रबंधकारिणी कमेटी का गठन किया गया, जो इस मंदिर समिति के संस्थापक सदस्य व प्रधान थे। वर्तमान में प्रीतम सिंह मंदिर कमेटी के प्रधान हैं ।
इस बाबत जानकारी देते हुए मंदिर कमेटी के प्रधान प्रीतम सिंह ने बताया कि जब से माता नागनी प्रकट हुई है तब से हर साल सावन औऱ भादो के महीने में यहाँ पर हर शनिबार को मेले का आयोजन किया जाता है। ये 9 मेले होते है और अंतिम शनिवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है । उन्होंने बताया कि रेवनियु रिकार्ड के अनुसार 1859 से ही माता का स्थान दर्ज है तभी से लेकर इस मेले का आयोजन होता आया है।
मंदिर कमेटी के प्रधान प्रीतम सिंह ने लोगो से अपील की है कि अगले शनिवार को मेले का अंतिम दिन होगा इसलिए मेले मे ज्यादा से ज्यादा लोग आकर मेले की शोभा बढ़ाये औऱ भंडारे का आनंद ले।