डलहौज़ी हलचल (पांवटा साहिब) डॉ. प्रखर गुप्ता : छठ महापर्व वैसे तो बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश आदि राज्यों का मुख्य पर्व है परंतु अब यह पर्व पूरे देश एवं समस्त दुनिया में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है !
इसी कड़ी में पांवटा साहिब में भी हर वर्ष की भांति मां सरस्वती पूजा समिति इस वर्ष भी छठ पूजा का आयोजन 19 नवंबर को बड़े ही उत्साह एवं धूमधाम से करेगी यह आयोजन पांवटा साहिब में बातापुल पर किया जाएगा इस मौके पर मेले का आयोजन भी किया जाएगा !
जानकारी देते हुए कमेटी के सदस्य धर्मेंद्र सिंह गुड्डू ने बताया कि 19 नवंबर को 3:00 बजे कलश यात्रा निकाली जाएगी जो की फायर स्टेशन के नजदीक से बातापुल तक जाएगी उसके बाद वृत्ति एवं उनके परिवार के लोग डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे एवं 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व व्रत को पूर्ण किया जाएगा!
चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य देते हुए समापन होता है। छठ महापर्व सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार होता है। इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की पूजा-उपासना विधि-विधान के साथ की जाती है। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस पर्व में आस्था रखने वाले लोग सालभर इसका इंतजार करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि छठ का व्रत संतान प्राप्ति की कामना, संतान की कुशलता, सुख-समृद्धि और उसकी दीर्घायु के लिए किया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी सभी जरूरी बातें..
नहाए-खाय से छठ महापर्व प्रारंभ
यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है। इसमें 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए इस व्रत को रख जाता है। छठ पूजा का व्रत रखने वाले लोग चौबीस घंटो से अधिक समय तक निर्जल उपवास रखते हैं। इस पर्व का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को रखा जाता है, लेकिन छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से हो जाती है, जिसका समापन सप्तमी तिथि को प्रातः सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है।
छठी पूजा का महत्व
छठ पूजा के दौरान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पूजा में भक्त गंगा नदी जैसे पवित्र जल में स्नान करते हैं। महिलाएं निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव और छठी माता के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। दूसरे और तीसरे दिन को खरना और छठ पूजा कहा जाता है। महिलाएं इन दिनों एक कठिन निर्जला व्रत रखती हैं। साथ ही चौथे दिन महिलाएं पानी में खड़े होकर उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर व्रत का पारण करती हैं।