इसरो (Indian Space Research Organisation) ने एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। शुक्रवार सुबह 9.17 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से SSLV-D3 रॉकेट का सफल प्रक्षेपण किया गया। यह Small Satellite Launch Vehicle (SSLV) की तीसरी और अंतिम उड़ान थी, जिसने EOS-08 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया है। इस मिशन की सफलता से भारत की अंतरिक्ष में निगरानी क्षमताओं में और बढ़ोतरी होगी।
SSLV-D3 रॉकेट और EOS-08 सैटेलाइट की मुख्य विशेषताएँ [ISRO Satellite Launch]
EOS-08 सैटेलाइट:
- वजन: 175.5 किलोग्राम
- कक्षा: 475 किमी की गोलाकार कक्षा में 37.4 डिग्री के झुकाव के साथ स्थापित।
- मिशन: पृथ्वी की निगरानी और डेटा संग्रह।
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इसरो (Indian Space Research Organisation) ने एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। शुक्रवार सुबह 9.17 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से SSLV-D3 रॉकेट का सफल प्रक्षेपण किया गया। यह Small Satellite Launch Vehicle (SSLV) की तीसरी और अंतिम उड़ान थी, जिसने EOS-08 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया है। इस मिशन की सफलता से भारत की अंतरिक्ष में निगरानी क्षमताओं में और बढ़ोतरी होगी।SSLV-D3 रॉकेट और EOS-08 सैटेलाइट की मुख्य विशेषताएँ [ISRO Satellite Launch]EOS-08 सैटेलाइट:SSLV-D3 रॉकेट:मिशन के लाभ और उद्देश्य
SSLV-D3 रॉकेट:
- लंबाई: 34 मीटर
- वजन: 120 टन
- विशेषता: तेजी से असेंबली की क्षमता, केवल एक सप्ताह में लॉन्च के लिए तैयार।
मिशन के लाभ और उद्देश्य [Benefits and Mission Objectives]
इसरो के इस रॉकेट ने तीन सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजा है। इनमें से प्रत्येक सैटेलाइट का विशिष्ट उद्देश्य है:
- धरती की विस्तृत छवियों का कैप्चर:
एक सैटेलाइट 24 घंटे पृथ्वी की विस्तृत तस्वीरें और फोटोज़ कैप्चर करेगा, जिससे पर्यावरण की निगरानी में मदद मिलेगी। - प्राकृतिक आपदाओं का विश्लेषण:
दूसरी सैटेलाइट महासागरों, पहाड़ों, बर्फ के आवरण और जंगलों का विश्लेषण करेगी। यह भूकंप, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी एकत्र करेगी। - पराबैंगनी विकिरण की निगरानी:
तीसरी सैटेलाइट अंतरिक्ष में पराबैंगनी विकिरण को मापने के लिए डिज़ाइन की गई है। यह भविष्य के मानव मिशन, गगनयान, के लिए UV विकिरण की निगरानी करेगी।
इस मिशन के सफलतापूर्वक पूरा होने से भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और पृथ्वी की निगरानी क्षमताओं में बड़ा योगदान होगा। यह सैटेलाइट्स पर्यावरण की सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान, और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने में अहम भूमिका निभाएंगे।