Japan International Cooperation Agency :
डलहौज़ी हलचल (मंडी) : जापान अन्तराष्ट्रीय सहयोग एंजेसी (Japan International Cooperation Agency) द्वारा वित पोषित हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबन्धन और आजीविका सुधार परियोजना के तहत प्रदेश के 7 जिलों- मंडी, कुल्लू,लाहौल स्पीति,किन्नौर,शिमला, कांगड़ा,बिलासपुर में 460 ग्राम स्तर पर वन विकास समितियां और 900 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिकी में सुधार के लिए स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लगभग 24 आय सृजन गतिविधियां कार्यशील हैं जिनमें मुख्यतःमशरूम उत्पादन, हथकरघा, चीड़ की पत्तियों से बने सजावटी सामान सीरा सेपू बड़ी, टौर की पतले बनाना इत्यादि हैं ।
जायका (Japan International Cooperation Agency) प्रोजैक्ट रेंज सरकाघाट में 2018 को शुरू हुआ व इसमें बर्ष 2020 से कार्य शुरू हुआ । इसमें मुख्यतः 7 वीएफडीएस बनाए जिनमें 14 स्वयं सहायता समूह बने हैं। परियोजना से लाभान्वित ऐसा ही एक गांव सरकाघाट उपमंडल की भदरौता क्षेत्र की ग्राम पंचायत टिक्कर का है – कठोगण ।यहाँ परियोजना के तहत गठित ग्रामीण वन विकास समिति के अध्यक्ष पवन ठाकुर, सार्जेंट बताते हैं कि गांव में जायका वन विभाग अधिकारियों व पूर्व डीएफओ वीपी पठानिया की देखरेख में कार्यन्वित हुई ।
उन्होंने बताया कि परियोजना के तहत पौधारोपण के तहत गांव में 20 हैक्टेयर में काम हो रहा है जिसमें 10 हैक्टेयर विभागीय मोड व 10 हैक्टेयर पार्टीसिपेटरी फॉरैस्ट मैनेजमैंट मोड में किया जा रहा है जिसमें 5000 पौधे 10 हैक्टेयर में और 5000 पौधे विभागीय मोड में प्रत्यारोपित किए गए हैं वहीं जीविकोपार्जन कार्यक्रम में दो स्वयं सहायता समूह गांव में गठित किए गए हैं- नैणा माता सिलाई कढ़ाई समूह व जोगणी माता मशरूम ग्रुप । इसके अतिरिक्त 5 लाख रूपये की लागत से कम्यूनिटी हॉल बनाया गया है। निर्माण कार्य में 10 प्रतिशत भागीदारी गांव वासियों की रही ।ठाकुर ने कहाकि इस लाभकारी योजना से लाभान्वित हुए गांववासी जायका,वन विभाग तथा प्रदेश सरकार के आभारी हैं।
नैणा माता स्वयं सहायता समूह कठोगण की प्रधान रीता कुमारी व सदस्य चम्पा देवी ने बताया कि दिसम्बर 2020 से सिलाई -कढ़ाई व बुनाई का काम शुरू किया जिसके लिए 2 माह का प्रशिक्षण मिला तथा जायका (Japan International Cooperation Agency) द्वारा आसान दरों पर एक लाख रुपये का लोन भी दिया गया ।ग्रुप में आठ महिलाएँ है जो आपस में लोन की सहायता से लेन देन कर रहे हैं। स्वेटर ,कपड़े सिलने, फ्रॉक इत्यादि की सिलाई कढ़ाई कर अपने पैरों पर खड़ा होने का अहसास हुआ वहीं घर का खर्चा उठा पाने में सक्ष्म हो पाई ।
जोगणी माता मशरूम ग्रुप कठोगण के प्रधान बालम राम ठाकुर व सदस्य रोशन लाल ने बताया कि समूह के 15 सदस्य हैं जो दिसंबर 2020 से कार्य कर रहे है । ढींगरी व बटन मशरूम उत्पादन का दो दिन का प्रशिक्षण सुंदरनगर फिर केवीएस डाकटरों द्वारा 15 दिन का डेमो मिला व उसके बाद 6 दिन का चम्बाघाट, सोलन में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया फिर समय-समय पर कृषिविदों का मार्ग दर्शन मिलता रहता है ।
बताया कि यह एक ऐसी खेती है जो सुबह -शाम की जा सकती है तथा इसे जानवर भी क्षति नहीं पहंचाते व साथ में दूसरे काम भी किए जा सकते हैं । उन्होंने बताया कि मशरूम के बेड सुंदरनगर या पालमपुर से लाने पड़ते है। जहाँ ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है। मशरूम उत्पादन पर लगाई राशि का दोगना शुद्ध लाभ मिल रहा है। हमें एक बैग का 50 रूपये खर्चा आता है जिससे 3 किलो तक मशरूम निकल जाते है जोकि इसमें 300-400 रूपये तक बाजार में बिक जाते हैं ।बटन मशरूम के लिए पालमपुर से कम्पोस्ट लाकर यहाँ उगाते हैं ।उन्होंने बताया कि इस अत्यन्त लाभकारी कार्य करने से उनकी आर्थिकी सुदृढ़ हुई है।
रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, सरकाघाट रजनी राणा ने बताया कि कठोगण में वीएफडीएस में दो स्वयं सहायता समूह हैं। एक मशरूम की खेती व दूसरा कटिंग व टेलरिंग का काम करता है। इनके सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया है। सिलाई कढ़ाई हेतु अनुदान पर आवश्यक मशीनें भी विभाग की तरफ से मुहैया करवाई जा रही हैं जिसके लिए 75 प्रतिशत खर्च विभाग और प्रोजेक्ट जबकि 25 प्रतिशत लाभार्थी को वहन करना होगा। प्रोजैक्ट के तहत ही पाईन नीडल की ब्रिकेट्स बनाने का भी प्रशिक्षण तथा डैमोन्सन्ट्रेशन दिया गया ।
डिपार्टमेंटल तथा पीएफएम मोड में प्लाँटेशन का कार्य भी करवाया जा रहा है। साथ साथ ग्राफटेड प्लांट्स में आमला, हरड, भेड़ा, जामून आदि औषधिया पौधे लगाए गए हैं। सामुदायिक विकास में सामुदायिक हाल बनाया गया है ।रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाए गए हैं। लोग अपने साथ वाली जगह पर पानी पहुँचा सकते हैं और सिंचाई या अन्य कार्यो में इसका उपयोग कर सकते हैं।इसके अलावा पानी की कुल्हें , पानी के टैंक बनाए गए हैं। बावड़ियों का जीर्णोद्वार का कार्य भी जायका प्रोजेक्ट के द्वारा किया जाता है। दूसरी वीएफडीएस भी हैं उनमें डेयरी उत्पादों का कार्य किया जा रहा है।