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निरंकारी सत्संग में सुरेन्द्र शर्मा जी के प्रवचन: भक्ति और ईश्वर की पहचान का महत्व

Dalhousie Hulchul
निरंकारी सत्संग में सुरेन्द्र शर्मा जी के प्रवचन
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डलहौज़ी हलचल (डलहौज़ी) – रविवार को स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन बनीखेत में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया, जिसमें सुरगाणी ब्रान्च के मुखी महात्मा सुरेन्द्र शर्मा जी ने अपने प्रवचनों में भक्ति, ईश्वर की पहचान, और सतगुरु की कृपा से मिलने वाली दिव्य दृष्टि का महत्व बताया। उन्होंने फरमाया:

“जिसकी भक्ति, जिसकी पूजा, उसका ज्ञान जरूरी है।
कहे हरदेव कि पहले ईश्वर की पहचान जरुरी है।”

ईश्वर की पहचान और भक्ति का महत्व

सुरेन्द्र शर्मा जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि ईश्वर को साकार रूप में देखने के लिए एक अलौकिक दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है, जो केवल सतगुरु की कृपा से प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि हम बेहद भाग्यशाली हैं कि ईश्वर हमारे अंग-संग निराकार और साकार दोनों रूपों में उपस्थित हैं। भक्ति का असली अर्थ यह है कि भगवान को हर पल अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में याद रखें और इसे अपना स्वभाव बनाएं।

निरंकारी सत्संग में सुरेन्द्र शर्मा जी के प्रवचन

स्वार्थरहित भक्ति का संदेश

उन्होंने जोर दिया कि भक्ति का उद्देश्य स्वार्थ या किसी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं होना चाहिए। भक्ति का असली अर्थ भगवान की उपस्थिति को निरंतर महसूस करना है, और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना है।

मनुष्य जन्म का महत्व

सुरेन्द्र शर्मा जी ने यह भी कहा कि मनुष्य जन्म बहुत दुर्लभ है और इसका परम उद्देश्य सतगुरु से निराकार प्रभु परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर यशोगान और भक्ति करना है। यह ज्ञान जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति दिलाता है और मोक्ष की ओर ले जाता है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि यह कार्य जीवनकाल में पूरा नहीं किया गया तो अंत समय में पछतावे के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा, और यह मनुष्य जन्म व्यर्थ चला जाएगा।

सत्संग में संत महात्माओं की भागीदारी

इस अवसर पर डलहौज़ी, टप्पर, बनीखेत, बगडार, बाथरी, गोली, देवीदहेरा और परिहार के आसपास के संत महात्माओं ने हिस्सा लिया और निरंकार प्रभु का गुणगान किया। इस सत्संग में शामिल सभी श्रद्धालुओं ने सुरेन्द्र शर्मा जी के प्रवचनों को ध्यानपूर्वक सुना और भक्ति का महत्व समझा।

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