
इससे अस्पताल प्रबंधन व मरीजों में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। आग के कारण चारों तरफ धुआं ही धुआं फैल गया। आग अस्पताल के चिकित्सकों के आवासीय परिसर के पास तक पहुंच गई। घटना की सूचना मिलने के बाद एसडीएम जगन ठाकुर, थाना प्रभारी अनिल कुमार, तहसीलदार राजेश जरयाल, अग्निशमन जवान, वायु सेना के जवान, नगर परिषद, जलशक्ति विभाग के कर्मचारी सहित स्थानीय लोग आग बुझाने की कोशिशों में जुट गए।
करीब दो से ढाई घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद चिकित्सकों के आवास व एसएमओ के एक पुराने आवास को आग की चपेट में आने से तो बचा लिया गया मगर वन क्षेत्र के समीप ही स्थित एक पशुशाला आग की चपेट में आकर जलकर राख हो गई।
आगजनी की इस घटना में वन संपदा का काफी ज्यादा नुकसान होने के साथ वन्य प्राणी जीवन भी प्रभावित हुआ है। जंगल में लगी आग से बचने के लिए वन्य प्राणी भी सुरक्षित क्षेत्रों की ओर भाग रहे थे और इस दौरान एक भालू जंगल की आग से बचता हुआ कथलग गांव के मार्ग की ओर पहुंच गया। स्थानीय लोगों द्वारा शोर मचाने पर भालू आग से दूर जंगल की दूसरी तरफ चला गया।
वन क्षेत्र में लगी आग को काबू में करके अस्पताल के आवासीय परिसर, अस्पताल भवन व आक्सीजन प्लांट को बचाने के लिए वायुसेना व दमकल विभाग के वाहनों में पर्याप्त पानी की आपूर्ति करने में जहां एक बार फिर डलहौजी शहर की वाटर टैंकर यूनियन ने आगे आकर पानी की व्यवस्था की। अस्पताल परिसर में स्थित वाटर टैंक के पानी के साथ यहां अंग्रेजों के जमाने में अस्पताल की स्थापना के साथ ही लगभग 134 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया फायर हाइड्रेंट भी काफी काम आया। हाइड्रेंट से पानी की सुचारू सप्लाई से दमकल वाहनों में पानी भरकर वन क्षेत्र की आग पर बौछारें कर आग को काबू में किया जा सका।