
कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती व काले बाबा को माल्यार्पण कर की । सरस्वती वंदना युगल रूप में वीना वर्धन व विजय कुमारी सहगल ने अपने मधुर स्वर में प्रस्तुत की । संगोष्ठी की शुरुआत अन्नया की कविता की पंक्तियां पढ़ाकू की सूझ से हुई , सरोज व सहेलियों ने कृष्ण भजन सांवरी सूरत पे मोहन दिल दिवाना हो गया , तृप्ता कौर ने किसान आया देखो देखो किसान आया , वीना वर्धन ने जे मैं धोआं कपड़े तुसे सूकने पाया करो , विजय कुमारी सहगल ने दुखों के अंधियारे से चल चुरा कर लाएं खुशियों के दो पल हम , रणजीत वर्धन ने बनावटी है यह मुस्कान हसीनों की हंसी पर इनकी ऐतवार मत करना , रविंद्र ठाकुर ने अच्छा मजाक करते हैं लोग , राकेश मंहास ने तेरी दूरी का एहसास ऐसा है , विपिन कुमार चंदेल ने तेरी पलकों का झुकना कयामत या अमावस्या की रात कहूं मैं , प्रेमलता ठाकुर ने बेटी शीर्षक के ऊपर कविता पाठ किया , गोरखू राम शास्त्री ने इस्से महंगाईये मति मारीती , बुद्धि सिंह चंदेल ने रूक्ख अस्सा रे जीवन साथी धरतिया रे सिंगार मत कर तू बर्बाद मणुवां करीले इना कने प्यार , अमरनाथ धीमान ने सुबह चमकती ओंस की बूंदे दिन भर पानी बरसता है मंदिर मस्जिद या हो गुरुद्वारे मानव ही तो बसता है , चंद्रशेखर पंत ने हो गए सभी बेपर्दा कह गया , सुरेंद्र सिंह मिन्हास ने चाणुवा रे पाऊ री जणेती च मै बी खूब लेई पित्ती , रविन्द्र चंदेल कमल ने ठाकुरद्वारा में हुए विराजमान निहारी , झंडूता , सुन्हाणी , गेहडवी और समताहण में ठाकुर बन विराजे ।
कार्यक्रम में प्रेम लता ठाकुर सरोज व अन्य नवोदित्त कवियों ने मंच की सदस्यता ग्रहण की । मुख्य अतिथि प्रेमलता ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि हमें समाज में फैली कुरीतियों को जड़ से दूर फेैंकने के लिए इस तरह के मंच व कार्यक्रमों की अति आवश्यकता है जिससे स्वच्छ समाज की परिकल्पना साकार हो सके । मंच के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह मिन्हास ने कहा कि हमें मिलजुलकर काव्य रस की धारा को अविरल बहाते रहना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ीयां साहित्य की इस रस धारा में डुबकी लगा सके ।
अंत में मंच के संरक्षक अमरनाथ धीमान ने सभी उपस्थित महानुभावों का आभार प्रकट किया व मंच को सहयोग देने का भी आह्वान किया ।